Saturday 9 June 2012

देव व्रत


मैं  प्रतिभा सक्सेना जी के  ब्लॉग लालित्यम्  की  नियमित पाठक हूँ.  प्रतिभा जी के  इस ब्लॉग पर आजकल  पांचाली कथा की श्रृंखला प्रस्तुत की जा रही है. इसी श्रंखला के तथ्यों  और घटनाओं से प्रेरित होकर भीष्म पितामह से सम्बंधित जो विचार मेरे मन में उपजे ..उनको यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ ...


देव व्रत !
हस्तिनापुर ने 
क्या पाया तुम्हारी 
प्रतिज्ञा से ?
पिता के दैहिक पोषण 
के लिए एक अबला 
को रथ पर 
लिवा  लाये.
किसका  हित  साधा ?
क्या हस्तिनापुर का   ?
व्रत तो व्यापक हित का था न गांगेय  ?

ब्याह लाये
बेबस, भयाक्रांत,
स्वयंवराओं को 
हतवीर्य रोगी भाइयों 
के लिए .
और खड़ा कर दिया...
वारिस प्राप्ति हेतु 
अभद्र धीवर सुत समक्ष !
किसका मान बढाया ?
नारिजाति या पुरु वंश का ?

नियोग करते गर अम्बा से 
तो हरे कौन, वरे कौन  
क्या प्रश्न उठ पाता ?
या समर्थ संतान न पैदा होती, 
कुल की रक्षा हेतु ?

पितृ ऋण से मुक्ति पा 
क्या मातृ आज्ञा का 
सम्मान किया या 
अपने व्रत का मान किया ?
वंश बेल सूख गयी 
पर क्या  तुमने नीति से 
काम लिया ?
रौंद दिया कितनों का 
अस्तित्व 
क्या यही था देव व्रत का 
दैवव्रत ?

कौन सी थाती सौंपी 
अगली पीढ़ी को ?
आजीवन मर्यादाविहीन 
व्यवहार सहे  
और कहलाये पितामह 
किसके मान की रक्षा की 
तुमने देव...अपने  ?

भू-लुंठित नहीं हुए तो क्या 
शर-शैय्या पर गिर 
कौन सा राजसी ठाट पाया 
वसु तुमने ?
आज सोचो किसका भला हुआ 
कौन उद्देश्य पूर्ण हुआ ?
किसका हित सधा
तुम्हारी इस महान प्रतिज्ञा से 
भीष्म ? 

35 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति!

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी सार्थक कविता। सच में, एक पीढ़ी की रक्षा में लगा जीवन महाभारत टाल भी सकता था। विचारणीय प्रश्न।

vandana gupta said...

बहुत से ऐसे कारण रहे जिनके कारण महाभारत की संरचना हुयी उनमे से एक ये भी रहा……………प्रश्न के दायरे मे तो आते ही हैं।

संध्या शर्मा said...

कौन सा उद्देश्य पूर्ण हुआ ?
किसका हित सधा
तुम्हारी इस महान प्रतिज्ञा से भीष्म ?
उठते रहेंगे ये प्रश्न... गहन भावयुक्त रचना

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

कौन उद्देश्य पूर्ण हुआ ?
किसका हित सधा
तुम्हारी इस महान प्रतिज्ञा से
भीष्म ? ,,,,,,,,

विचारणीय प्रश्न-? सार्थक गहन भाव लिये सुंदर रचना,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

मनोज कुमार said...

आपकी इस रचना को मैं अब तक की बेस्ट मानता हूं। इसमें न शिल्प सशक्त है बल्कि एक विषय को आपने समकालीन संदर्भ में रखकर देखने की कोशिश की है जो बहुत ही सशक्त स्वर में अभिव्यक्त हुआ है।

Kailash Sharma said...

बहुत गहन और सशक्त प्रश्न उठाये हैं...बहुत प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति...

रश्मि प्रभा... said...

अनुत्तरित भीष्म
लेती हूँ वापस तुम्हारी इच्छित मृत्यु का वरदान
रहो शय्या पर आजीवन
यही है तुम्हारी प्रतिज्ञा का प्रतिदान
.............
बहुत ही अच्छी रचना

Manoranjan Manu Shrivastav said...

देवब्रत ने भले ही अपने पिता की आगया का पालन किया, पर एक महायुद्ध की रुपरेखा जरुर तैयार कर दी थी .
देवब्रत से पूछे गए प्रश्न बिलकुल जायज़ हैं. बहुत बढ़िया
----------
मेरे ब्लॉग पे आएगा
आज भारत बंद है
प्रगतिशील सरकार की पहचान !

विभूति" said...

gahan prstuti.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

kshama said...

Hamesha sochtee hun,tumhen itne sundar alfaaz soojh kaise jate hain?

संजय भास्‍कर said...

गहन भावयुक्त सुन्दर रचना...भावाभिव्यक्ति अद्भुत है...बधाई स्वीकारें

Sadhana Vaid said...

बहुत ही सार्थक एवं सटीक प्रश्न उठाये हैं आपने अपनी रचना में और मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि भीष्म पितामह आज इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए स्वयं उपस्थित होते तो नि:संदेह रूप से आज वे भी निरुत्तर ही रह जाते ! आपकी आज की इस रचना में एक ऐसी आँच है जो जलाती नहीं बस एक प्रखर ऊष्मा देती है जो मन मस्तिष्क को सकारात्मक ऊर्जा से भर जाती है ! इतनी सशक्त प्रस्तुति के लिए बधाई !

प्रतिभा सक्सेना said...

प्रिय अनामिका ,उपकृत हूँ मैं कि तुमने मुझे श्रेय दिया! सचमुच तो यह तुम्हारा चिन्तन, सजग मानसिकता और प्रखर अभिव्यक्ति कौशल है जिसने भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा के निर्वहन की विसंगतियों को रेखांकित किया.
सबसे बड़ी बात तो यह कि बदली हुई स्थितियों में श्रीकृष्ण ने व्यापक हित और उचित उद्देश्य की सिद्धि के लिये (निन्दा-स्तुति से निरपेक्ष रह कर) अपने वचन भंग कर दिये, भीष्म ने अपने संरक्षण में अनितियों और अन्यायों को होने दिया.अंततः नारी के प्रति विचारहीनता ही उनकी मृत्यु और कुल-नाश का कारण बनी.

निर्मला कपिला said...

न जाने ऐसे कितने प्रश्न अनुतरित ही रह गये।पितामह हो कर भी अन्याय होने दिये ऐसे व्रत किस काम के। बहुत ही सार्थक प्रश्न।

रचना दीक्षित said...

गंभीर प्रश्न और गहन रचना.

इस सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत प्रभावी ... इतिहास के पात्र शायद इसी लिए रचे गए हैं की उनसे कुछ न कुछ प्रापर किया जा सके ... सही गलत का आंकलन किया जा सके ...

Asha Lata Saxena said...

भावपूर्ण सार्थक रचना |
आशा

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत खूब..

डा श्याम गुप्त said...

-- क्या बात है..
-----परन्तु ये यक्ष-प्रश्न सदैव युग-प्रश्न बने रहेंगे...
---सही कहा ..ऐसे एतिहासिक पात्र इसीलिये रचे गए कि ...हम उन बातों /गलतियों से सीख सकें ..
---- द्रौपदी के प्रश्नों का उत्तर भी भीष्म कब दे पाये थे...
---- यही अंतर है..भीष्म में एवं श्री कृष्ण में ...इसीलिये भीष्म मानव हैं कृष्ण ..भगवान ...
---परन्तु अम्बा से नियोग करने से भी दुर्योधन का स्थानापन्न मिल पाता क्या? ...नियोग भी उसी से किया जाता था जो वहाँ साथ सदैव आँखों के सामने न रहे...
----शायद उस पीढ़ी का नाश ही एक मात्र रास्ता था...अधर्म का नाश व धर्म स्थापना का ...कृष्ण की पीढ़ी के नाश की भांति ....

वाणी गीत said...

आखिर भीष्म की इस प्रतिज्ञा से राज्य और प्रजा दोनों का नुकसान ही हुआ .
सार्थक चिंतन !

ANULATA RAJ NAIR said...

जाने किसके पास है इस प्रश्न का उत्तर.........
या किसके पास है हिम्मत जो इस प्रश्न का उत्तर दे???

सार्थक रचना
सस्नेह
अनु

Anonymous said...

बेहतरीन और लाजवाब।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भीष्म ने भी कहाँ सोचा होगा कि उनके द्वारा ली गयी प्रतिज्ञा से क्या होने वाला है .... जब परिणाम दिखता है तब पता चलता है कि त्रुटि कहाँ हुई ?

सार्थक प्रश्न करती अच्छी प्रस्तुति

Shakuntala said...

क्या भीष्म सचमुच महिमामंडित थे?
य़दि गांगेय देवव्रत ही रहते,भीष्म न बने होते, तो महाभारत का बीजारोपण ही न होता। उनके वर्चस्व
के अहंभाव ने ही संपूर्ण कुल की विनाश-लीला रच दी।धृतराष्ट्र तो दृष्टिविहीन तो किन्तु भीष्म दृष्टि होते हुए भी आजीवन अनीति को नीति समझकर ही कार्य करते रहे। अन्याय का पोषण करते रहे।
मानस-मंथन की सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई!!

अरुण चन्द्र रॉय said...

शाश्वत प्रश्न उठती कविता... बहुत बढ़िया...

ऋता शेखर 'मधु' said...

इस तरह के प्रण ही रामायण या महाभारत रचते हैं...गहन सोच पर आधारित रचना !!

प्रेम सरोवर said...

आपका हर पोस्ट मुझे वीते वासर के विवर में झांकने के लिए प्रेरित कर जाता है, फलस्वरूप कुछ धार्मिक तथ्यों से अवगत हो जाता हूं । बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

प्रेम सरोवर said...

आपका हर पोस्ट मुझे वीते वासर के विवर में झांकने के लिए प्रेरित कर जाता है, फलस्वरूप कुछ धार्मिक तथ्यों से अवगत हो जाता हूं । बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

Satish Saxena said...

कौन समझ मेरी आँखों की नमी का मतलब
..

Udan Tashtari said...

गज़ब जी प्रेरणा प्राप्त अभिव्यक्ति...बहुत उम्दा!!

कुमार राधारमण said...

पौराणिक पात्र मानवीय दोषों के कारण ही ऐतिहासिक और सहज प्रतीत होते हैं।

सदा said...

आज सोचो किसका भला हुआ
कौन उद्देश्य पूर्ण हुआ ?
किसका हित सधा
तुम्हारी इस महान प्रतिज्ञा से
भीष्म ?
सार्थकता लिए सटीक अभिव्‍यक्ति ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

amrendra "amar" said...

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति....